भावशून्य हो चित्त जब, तब ही सम्भव योग।।
जन्म दिवस पर बाँटते, इष्ट-मित्र उपहार।
लेकिन घटते जा रहे, साल-महीने-वार।।
जिनके सूखे गात हैं, पीत हो गये पात।
उनको भी मधुमास में, मिल जाती सौगात।।
जीत-हार का खेल है, जीवन का संग्राम।
घटनाओं पर तो कभी, लगता नहीं विराम।।
मतलब में करते यहाँ, सभी लोग मनुहार।
सम्बन्धों में घट रहा, धीरे-धीरे प्यार।।
नहीं रहा वो समय अब, नहीं रहे वो मीत।
आपाधापी में यहाँ, किसे सुनायें गीत।।
बदल गये मौसम यहाँ, बदल गयी है रीत।
सरगम तो बदली नहीं, बदल गया संगीत।।
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बुधवार, 25 अप्रैल 2018
दोहे "किसे सुनायें गीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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@भावशून्य हो चित्त जब,तब ही सम्भव योग..........और यही सबसे मुश्किल होता है !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.04.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2952 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाआअह, बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंअति सुंदर
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