निर्धनता के जो रहे, जीवनभर पर्याय।
लमही में पैदा हुए, लेखक धनपत राय।।
आम आदमी की व्यथा, लिखते थे जो नित्य।
प्रेमचन्द ने रच दिया, सरल-तरल साहित्य।।
जीवित छप्पन वर्ष तक, रहे जगत में मात्र।
लेकिन उनके साथ सब, अमर हो गये पात्र।।
फाकेमस्ती में जिया, जीवन को भरपूर।
उपन्यास सम्राट थे, आडम्बर से दूर।।
उपन्यास 'सेवासदन', 'गबन' और 'गोदान'।
हिन्दी-उर्दू
अदब पर, किया बहुत अहसान।।
'रूठीरानी' को लिखा, लिक्खा 'मिलमजदूर'।
प्रेमचन्द मुंशी रहे, सदा मजे से दूर।।
लेखन में जिसका नहीं, झुका कभी किरदार।
उस लमही के लाल को, नमन हजारों बार।।
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मंगलवार, 31 जुलाई 2018
दोहे "मुंशी प्रेमचन्द जयन्ती पर विशेष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
संस्मरण "ऐसे पुत्र भगवान किसी को न दें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
संस्मरण
सम्बन्धों में हों जहाँ, छोटी-बड़ी दरार।
धरती पर कैसे कहें, उसे सुखी परिवार।।
आज बहुत ही भारी मन से यह
संस्मरण साझा कर रहा हूँ। मुझसे 11 वर्ष बड़े श्री गुरू सहाय भटनागर तैंतालिस
वर्षों से मेरे अभिन्न मित्र हैं। सन 1975 में जब मैं नैनीताल जिले की तराई में
स्थित गाँव बनबसा में आया था तब वह भी बनबसा हेडवर्क्स में स्टोरकीपर के पद पर
स्थानान्तरित होकर आये थे। उनके दो विवाहित पुत्र और एक विवाहित पुत्री है।
पुत्री तो बरेली में सम्पन्न परिवार में है मगर दोनों पुत्र बिल्कुल निकम्मे
हैं। श्री गुरू सहाय भटनागर जी “बदनाम”
के उपनाम से अपनी शायरी करते थे। आपका ग़ज़ल संग्रह "शाम-ए-तन्हाई" भी 25 साल पहले प्रकाशित हो चुका है। भटनागर
साहिब ने अपनी 50 बीघा गाँव की जमीन बेचकर दोनों पुत्रों के भरण-पोषण में लगा
दी।
रिटायरमेंट के बाद आप खटीमा
में आ गये, आवास विकास में एक मकान बना लिया उसमें रहने लगे। ग्यारह हजार की पेंशन
पर ही आप अपना गुजारा करते थे। आपकी श्रीमती जी 20 साल से हृदय रोग से ग्रस्त
हैं। दोनों पति-पत्नी में बहुत प्रेम था। लगभग 6 महीने पहले भटनागर जी को भूलने की
बीमारी लग गयी और वह बढ़ती ही गयी। तीन माह पूर्व तो हालत यह हो गयी कि वह घर
वालों के प्रति हिंसक व्यवहार करने लगे। उनकी श्रीमती ने उन्हे बरेली के अच्छे
से अच्छे डॉक्टर को दिखाया परन्तु बीमारी बढ़ती ही गयी। बरेली के जिस अस्पताल
में वे भर्ती थे वहाँ भी जवाब दे दिया गया। अन्ततः उन्हें घर ले आये।
भटनागर जी के नाक और गले में
श्वाँस और तरल भोजन के लिए रबड़ की नलियाँ पड़ीं थी। आपकी श्रीमती जी बीमार होते
हुए भी अपने पति की सेवा में कोई कोताही नहीं करती थी। छोटा पुत्र और उसका
परिवार आपके साथ ही रहता था। परन्तु पिता की बीमारी के बारे में सुनकर बड़े पुत्र ने भी खटीमा में ही आकर सपरिवार डेरा डाल दिया और पिता के मरने का इन्तजार
करने लगा कि कब पिता जी इस दुनिया से पलायन करें और कब वह मकान पर कब्जा करे।
एक दिन बड़ी पुत्रवधु ने
भटनागर साबव की खाने और श्वाँस लेने की
नलियाँ निकाल दी। इस पर भटनागर साहिब की पत्नी को गहरा आघात लगा और हार्ट अटैक
से उनकी मृत्यु हो गयी।
ईश्वर की लीला देखिए पहले
भटनागर साहब को जाना था और उनकी पत्नी 18 जुलाई, 2018 को इस दुनिया को छोड़ कर
चली गयीं। मेरे मित्र श्री गुरू सहाय भटनागर “बदनाम” जी इस दुनिया में हैं तो
सही लेकिन उनका होना और न होना एक बराबर है। वो न तो किसी को पहचानते हैं और
न ही कुछ बोलते हैं। पीठ और कुहनियों में घाव हो गये हैं। न जाने कहाँ उनकी
श्वाँस अटकी है।
मेरे जैसे उनके इष्ट-मित्रों के मन से यही आवाज निकलती है कि ईश्वर किसी
को भी श्री
गुरू सहाय भटनागर जी के पुत्रों जैसी सन्तान न दे।
मैं उनके प्रति अपनी श्रद्धा को प्रकट करने हेतु
श्री गुरू सहाय भटनागर ”बदनाम” जी की
एक ग़ज़ल इस अवसर पर प्रस्तुत कर रहा हूँ।
कब मुलाकात होगी
इशारों-इशारों में जब बात होगी
नज़र से नज़र की मुलाकात होगी
वो ज़ुल्फ़ों को अपनी बिखेरेंगे जब-जब
घटाओं से घिर-घिर के बरसात होगी
लबों पर तबस्सुम की हल्की-सी जुम्बिश
हसीं शोख़-सी उनसे इक बात होगी
बढ़ेगी फिर उनसे मोहब्बत यहाँ तक
मिलन की फिर उनसे शुरूआत होगी
वो शरमा के जब अपना मुँह फेर
लेंगे
मुहब्बत के फूलों की बरसात होगी
वो चल तो दिए दिल में तूफ़ां उठाकर
कि ‘बदनाम’ से कब
मुलाकात होगी
गुरू सहाय भटनागर 'बदनाम'
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सोमवार, 30 जुलाई 2018
गीत "सावन आया रे...." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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रविवार, 29 जुलाई 2018
"पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार।
बिना आपके हो गया, जीवन मुझ पर भार।।
एक साल बीता नहीं, माँ भी गयी सिधार।
बिना आपके हो रहा, दुखी बहुत परिवार।।
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बचपन मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।।
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जब तक मेरे शीश पर, रहा आपका हाथ।
लेकिन अब आशीष का, छूट गया है साथ।।
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प्रभु मुझको बल दीजिए, उठा सकूँ मैं भार।
एक-नेक बनकर रहे, मेरा ये परिवार।।
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शनिवार, 28 जुलाई 2018
दोहे "श्रद्धांजलि-प्रेरक नाम कलाम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
भारत माँ की कोख से, जन्मा पूत कलाम।
करते श्रद्धा-भाव से, उसको आज सलाम।।
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दुनिया में जाना गया, वह मिसाइल-मैन।
उसके जाने से सभी, कितने हैं बेचैन।।
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जिसने जीवन भर किया, मानवता का काम।
भारत का सर्वोच्च-पद, हुआ उसी के नाम।।
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बचपन जिया अभाव में, कभी न मानी हार।
दुनिया में विज्ञान को, दिया सबल आधार।।
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कुदरत को मञ्जूर जो, वो ही तो है होय।
क्रूर काल के चक्र से, बचा नहीं है कोय।।
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जीव आत्मा अमर है, मरता तुच्छ शरीर।
अपने उत्तम कर्म से, अमर रहेंगे वीर।।
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युगों-युगों तक रहेगा, दुनियाभर में नाम।
गूँजेगा संसार में, प्रेरक नाम कलाम।।
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भावप्रवण श्रद्धा-सुमन, करूँ समर्पित आज।
शोकाकुल है शोक से, देश-विदेश-समाज।।
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शुक्रवार, 27 जुलाई 2018
दोहागीत "गुरूपूर्णिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
यज्ञ-हवन करके करो, गुरूदेव का ध्यान।
जग में मिलता है नहीं, बिना गुरू के ज्ञान।।
भूल गया है आदमी, ऋषियों के सन्देश।
अचरज से हैं देखते, ब्रह्मा-विष्णु-महेश।।
गुरू-शिष्य में हो सदा, श्रद्धा-प्यार अपार।
गुरू पूर्णिमा पर्व को, करो आज साकार।।
गुरु की महिमा का करूँ, कैसे आज बखान।
जग में मिलता है नहीं, बिना गुरू के ज्ञान।(१)।
संस्कार देता गुरू, पाता सिख अमिताभ।
बिना दीक्षा के नहीं, शिक्षा का कुछ लाभ।।
अन्तस को दे रौशनी, गुरू ज्योति का पुंज।
गुरु के शुभ आशीष से, सुरभित होय निकुंज।।
सद्गुरु अपने शिष्य को, देता हरदम ज्ञान।
जग में मिलता है नहीं, बिना गुरू के ज्ञान।(२)।
तीन गुरू संसार में, मात-पिता-आचार्य।
इन तीनों की कृपा से, बनते सारे कार्य।।
आया कैसा समय है, बदल गयी है रीत।
गुरुओं के प्रति है नहीं, पहले जैसी प्रीत।।
श्रद्धा के बिन शिष्य का, कैसे हो उत्थान।
जग में मिलता है नहीं, बिना गुरू के ज्ञान। (३)।
दुराचरण की नाक में, कैसे पड़े नकेल।
सम्बन्धों की विश्व में, सूख रही है बेल।।
मर्यादा दम तोड़ती, बिगड़ गया परिवेश।
बदनामी को झेलता, राम-कृष्ण का देश।।
कदम-कदम पर हो रहा, गुरुओं का अपमान।
जग में मिलता है नहीं, बिना गुरू के ज्ञान। (४)।
पश्चिम की अश्लीलता, अपनाते हैं लोग।
भोगवाद को देखकर, सहम गया है योग।।
अब तो पूजा-पाठ से, मोह हो गया भंग।
सी.डी. में ही कर रहे, पण्डित जी सत्संग।।
गिरगिट जैसा रंग अब, बदल रहा इंसान।
जग में मिलता है नहीं, बिना गुरू के ज्ञान।(५)।
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दोहे "कलयुग में इंसान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
राजनीति में चल रही, साँठ-गाँठ भरपूर।
सिंहासन की दौड़ में, मीत हो गये दूर।।
आदत पल-पल बदलता, कलयुग में इंसान।
देख जगत के ढंग को, बदल रहा भगवान।।
सब अपने को कर रहे, सच्चा सेवक सिद्ध।
मांस नोचने के लिए, मँडराते हैं गिद्ध।।
अब तक भी समझे नहीं, जो
अपनी औकात।
बात-बात में कर रहे, मृग नयनी की बात।।
दादा जी के कबर में, लटक
रहे हैं पाँव।
लेकिन अब भी खोजते, वो आँचल की छाँव।। |
गुरुवार, 26 जुलाई 2018
दोहे "कौन सुखी परिवार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रिश्तो-नातों से भरा, सारा ही संसार।
प्यार परस्पर हो जहाँ, वो होता परिवार।।
सम्बन्धों में हों जहाँ, छोटी-बड़ी दरार।
धरती पर कैसे कहें, कौन सुखी परिवार।।
एक दूसरे के लिए, रहो सदैव उदार।
प्यार सुखी परिवार का, होता है आधार।।
अपने कुनबे में करो, कभी न झूठा प्यार।
सबके प्रति परिवार में, हों सच्चे उद्गार।।
कोई भी परिवार हो, कोई देश-समाज।
अवसर के अनुकूल ही, वहाँ बजाओ साज।।
एक-नेक रहता वही, दुनिया में परिवार।
जहाँ दिलों में हों भरे, सबके नेक विचार।।
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बुधवार, 25 जुलाई 2018
गीत "आओ अपना धर्म निभाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जीवन पथ पर चलते जाएँ।
आओ अपना धर्म निभाएँ।।
स्वाभिमान को कभी न त्यागें,
लालच के पीछे ना भागें,
जग को उसका कर्म बताएँ।
आओ अपना धर्म निभाएँ।१।
सोच हमेशा रखना व्यापक,
बन कर दिखलाना अध्यापक,
विषयवस्तु सबको समझाएँ।
आओ अपना धर्म निभाएँ।२।
जल में कुटिल पंक फैला है,
गंगा का आँचल मैला है,
फिर से निर्मल धार बनाएँ।
आओ अपना धर्म निभाएँ।३।
कुदरत की लीला अद्भुत है,
जीवन थोड़ा काम बहुत है,
पाप नहीं कुछ पुण्य कमाएँ।
आओ अपना धर्म निभाएँ।४।
राहू, वक्र-चन्द्र खा जाता,
सरल सदा मंजिल को पाता,
कभी विरल मत पथ अपनाएँ।
आओ अपना धर्म निभाएँ।५।
मन भी होगा तन भी होगा,
सुलभ न ऐसा जीवन होगा,
जाने कब मानुष तन पाएँ।
आओ अपना धर्म निभाएँ।६।
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