सिक्कों में बिकने लगा, दुनिया में
ईमान।
लोग रूप की धूप पर, करते हैं अभिमान।।
सदाचार का हो गया, दिन में सूरज अस्त।
अपनी ही करतूत पर, लोग हो रहे मस्त।।
तन-मन मैले हो रहे, झूठे हैं उपवास।
मेल-जोल का हो गया, मेला बहुत उदास।।
पंथ भिन्न तो क्या हुआ, सबका है ये देश।
मेल-जोल से ही यहाँ, बदलेगा परिवेश।।
भारत माता कर रही, कब से करुण पुकार।
गद्दारों को मार दो, ओ भगवा सरकार।।
अन्न और जल हो गया, दूषण से भरपूर।
जनसाधारण तो हुआ, आज मजे से दूर।।
जनता के ही राज में, जनता सुख से दूर।
मजदूरी मिलती नहीं, पढ़े-लिखे मजबूर।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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गुरुवार, 12 जुलाई 2018
दोहे "लोग हो रहे मस्त" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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Sahi kaha aapne...
जवाब देंहटाएंसिक्कों में बिकने लगा, दुनिया में ईमान।
जवाब देंहटाएंलोग रूप की धूप पर, करते हैं अभिमान।।
कब ढल जाती धूप है रहता नहीं गुमान ,
कभी न करिये रूप पर बित्ता भर अभिमान।
बेहतरीन सन्देश देती दोहावली शास्त्रीजी की।
सुन्दर सृजन आदरणीय
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