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पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार।
बिना आपके हो गया, जीवन मुझ पर भार।।
एक साल बीता नहीं, माँ भी गयी सिधार।
बिना आपके हो रहा, दुखी बहुत परिवार।।
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बचपन मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।।
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जब तक मेरे शीश पर, रहा आपका हाथ।
लेकिन अब आशीष का, छूट गया है साथ।।
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प्रभु मुझको बल दीजिए, उठा सकूँ मैं भार।
एक-नेक बनकर रहे, मेरा ये परिवार।।
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रविवार, 29 जुलाई 2018
"पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नमन।
जवाब देंहटाएंनमन 🙏
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-07-2018) को "झड़ी लगी बरसात की" (चर्चा अंक-3048) (चर्चा अंक-3034) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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पूज्य पिता जी को नमन।
सादर...!
राधा तिवारी
एक साल बीता नहीं, माँ भी गयी सिधार।
जवाब देंहटाएंकितनी वेदना समाई है इन शब्दों में आदरणीय सर | नमन पूज्य पिताजी और माता जी को |
नमन है माता जी और पिता जी को ...
जवाब देंहटाएंबस यादें रह जाती हैं अक्सर ...
पिता एक निस्वार्थ छाता जिसकी छाँव और आश्रय से बाहर होते ही व्यक्ति नितांत अकेला आश्रयहीन रह जाता है। फिर भी पिता एक श्री राम सबके हर दम राम। हमें अपनी शरण में ले लो राम।
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