करते-करते भजन, स्वार्थ छलने लगे। करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। झूमती घाटियों में, हवा बे-रहम, घूमती वादियों में, हया बे-शरम, शीत में है तपन, हिम पिघलने लगे। करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। उम्र भर जख्म पर जख्म खाते रहे, फूल गुलशन में हरदम खिलाते रहे, गुल ने ओढ़ी चुभन, घाव पलने लगे। करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। हो रहा हर जगह, धन से धन का मिलन, रो रहा हर जगह, भाई-चारा अमन, नाम है आचमन, जाम ढलने लगे। करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। |
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मंगलवार, 31 अगस्त 2021
गीत "नाम है आचमन, जाम ढलने लगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हो रहा हर जगह, धन से धन का मिलन,
जवाब देंहटाएंरो रहा हर जगह, भाई-चारा अमन,
नाम है आचमन, जाम ढलने लगे।
करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।।
बहुत सुंदर गीत .... आज के वक्त को सटीकता से यह दर्शा रहा है...
आज के ढ़ोल की पोल खोलती सटीक रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव सुंदर शब्द।
तरीन गीत शस्त्रीजी रूप चंद मयंक का -
जवाब देंहटाएंनाम है आचमन, जाम ढलने लगे। करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।।
शीत में है तपन, हिम पिघलने लगे।
करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। स्वभाव छोड़ रही है हर चीज़ अपना क्लाइमेट चेंज सा।
नाम है आचमन, जाम ढलने लगे।
जवाब देंहटाएंकरते-करते यजन, हाथ जलने लगे।।
सुंदर सृजन सर ,सादर नमन
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक
जवाब देंहटाएं02-09-2021को चर्चा – 4,175 में दिया गया है।
आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुन्दर सारगर्भित सृजन ।
जवाब देंहटाएंनाम है आचमन, जाम ढलने लगे।
जवाब देंहटाएंकरते-करते यजन, हाथ जलने लगे।।
वाह…बहुत खूब