मातृ-दिवस पर माँ को प्रणाम करते हुए कुछ दोहे -- सिर पर होना चाहिए,
माता जी का हाथ।। -- पैंसठ वर्षों तक मिला, माँ का प्यार-दुलार। अब माँ बिन सूना लगे, मुझको सब संसार।। -- जिनके सिर पर है नहीं,
माँ का प्यारा हाथ। उन लोगों से पूछिए,
कहते किसे अनाथ।। -- लालन-पालन में दिया,
ममता और दुलार। बोली-भाषा को सिखा,
करती माँ उपकार।। -- जगदम्बा के रूप में,
रहती है हर ठाँव। माँ के आँचल में मिले,
सुख की शीतल छाँव।। -- सुख-दुख दोनों में रहे,
कोमल और उदार। कैसी भी सन्तान हो,
माँ देती है प्यार।। -- करते माता-दिवस का,
क्यों छोटा आकार। प्रतिदिन करना चाहिए,
माँ से प्यार अपार।। -- |
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रविवार, 8 मई 2022
दोहे "माँ से प्यार अपार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह वाह!मान्यवर,सुंदर,सार्थक और सामयिक
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 09 मई 2022 को 'तो क्या कुछ भी नहीं बदला ?' (चर्चा अंक 4424) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
करते माता-दिवस का, क्यों छोटा आकार।
जवाब देंहटाएंप्रतिदिन करना चाहिए, माँ से प्यार अपार।।
बहुत ही सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएं