महक से अपनी सुमन, दुनिया को छलता है। प्यार का झरना, पहाड़ों में मचलता है।। रात हो, दिन हो, अँधेरा या उजाला हो, सब वहीं जाते, जहाँ मिलता निवाला हो, भ्रमर को अक्सर,
चमन का रूप छलता है। प्यार का झरना, पहाड़ों में मचलता है।। जेठ की दोपहर हो या, माघ की शीतल पवन, इश्क की चिंगारियों से ही, सुलगती है अगन, प्रणय का सूरज, जवानी से निकलता है। प्यार का झरना, पहाड़ों में मचलता है।। रास्ते सबके अलग,
पर मंजिलें तो एक हैं, उदित सूरज का सभी, करते यहाँ अभिषेक हैं, लक्ष्य पाने को मनुज, काँटों पे चलता है। प्यार का झरना, पहाड़ों में मचलता है।। आँधियाँ हरगिज बुझा, सकती नहीं नन्हा दिया, लगन हो जिसमें उसी ने, पार सागर को किया, ज्ञान का दीपक,
हवा में तेज जलता है। प्यार का झरना, पहाड़ों में मचलता है।। |
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मंगलवार, 10 मई 2022
गीत "प्यार का झरना, पहाड़ों में मचलता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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प्रेरक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित अभिव्यक्ति है शास्त्री जी |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना आदरणीय।
जवाब देंहटाएंआँधियाँ हरगिज बुझा, सकती नहीं नन्हा दिया,
जवाब देंहटाएंलगन हो जिसमें उसी ने, पार सागर को किया,
ज्ञान का दीपक, हवा में तेज जलता है।
प्यार का झरना, पहाड़ों में मचलता है।।
..बहुत सुन्दर