जग की पोथी पढ़ते-पढ़ते, सारी उम्र तमाम हो गई। पथ पर आगे बढ़ते-बढ़ते, जीवन की अब शाम हो गई।। -- जितना आगे कदम बढ़ाया, मंजिल ने उतना भटकाया, मन के मनके जपते-जपते,
वाणी मुख में जाम हो गई। पथ पर आगे बढ़ते-बढ़ते, जीवन की अब शाम हो गई।। -- चिढ़ा रही मुँह, आज भव्यता, सुबक-सुबक, रो रही नव्यता, गीत-गज़ल को रचते-रचते, नैतिकता नीलाम हो गई। पथ पर आगे बढ़ते-बढ़ते, जीवन की अब शाम हो गई।। -- स्वर की लहरी मन्द हो गई, नई नस्ल स्वच्छन्द हो गई, घर की बातें रही न घर में, दुनियाभर में आम हो गई पथ पर आगे बढ़ते-बढ़ते, जीवन की अब शाम हो गई।। -- दर्शन-मेला कभी न भाया, रंग-ढंग कुछ रास न आया, फूटी ढोलक मढ़ते-मढ़ते नेक-नीति बदनाम हो गयी। पथ पर आगे बढ़ते-बढ़ते, जीवन की अब शाम हो गई।। मन है कितना कलुषित पापी, कदमताल में आपाधापी, अपनों से जब बिछुड़ गया तो- दुनिया ललित-ललाम हो गयी। पथ पर आगे बढ़ते-बढ़ते, जीवन की अब शाम हो गई।। -- |
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शनिवार, 21 मई 2022
गीत "जीवन की अब शाम हो गई" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-5-22) को "यह जिंदगी का तिलिस्म है"(चर्चा अंक-4438) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
जीवन के अनुभवों का निचोड़ । सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंजीवन के सार तत्वों को समेटकर लिखी गयी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आपको
गहन भाव उकेरे हैं शास्त्री जी | सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंNice Sir .... Very Good Content . Thanks For Share It .
जवाब देंहटाएं( Facebook पर एक लड़के को लड़की के साथ हुवा प्यार )
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