ऐसा कोई शख्श नहीं, जो आसमान से आया है। ऐसा कोई नक्श नहीं, जो नहीं किसी
को भाया है।। जिसने जो कुछ भी सीखा, कुदरत ने उसको सिखलाया, सजना और सवँरना सबको, दर्पण ने ही बतलाया, ऐसा कोई अक्स नही, जिसमें नहीं नूर
समाया है। ऐसा कोई नक्श नहीं, जो नहीं किसी को भाया है।। जिसमें ज्ञान भरा सारा, जीवन ही
ऐसी
है शाला, गुंथी हई मोती-माणिक से, रत्नों की सुन्दर माला, ऐसा कोई दक्ष नहीं, जो हुनर साथ में लाया है। ऐसा कोई नक्श नहीं, जो नहीं किसी को भाया है।। धरा-धाम में लिखी हुई है, कदम-कदम पर नई इबारत, गगन चूमती हैं स्वदेश में, अजब-गजब तामीर इमारत, ऐसा कोई कक्ष नहीं, जिसने सौन्दर्य न पाया है। ऐसा कोई नक्श नहीं, जो नहीं किसी को भाया है।। प्यार प्रीत की फुलवारी, क्यों समरक्षेत्र बन गई धरा? आपाधापी मची हुई, क्यों राम और रहमान मरा? ऐसा कोई लक्ष्य नहीं, जो बेधन से बच पाया है। ऐसा कोई नक्श नहीं, जो नहीं किसी को भाया है।। |
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शुक्रवार, 13 मई 2022
गीत "क्यों राम और रहमान मरा?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-०५-२०२२ ) को
'रिश्ते कपड़े नहीं '(चर्चा अंक-४४३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
'ऐसा कोई दक्ष नहीं,
जवाब देंहटाएंजो हुनर साथ में लाया है।' -बहुत सुन्दर कह दिया है आपने प्रिय बन्धु मयंक जी!
बहुत लाजवाब शास्त्री जी ... हर रचना कमाल है आपकी ...
जवाब देंहटाएं