चार उँगलियाँ और अँगूठा, मिलकर बन जाता है घूँसा। सुमन इकट्ठे रहें जहाँ पर, वो कहलाती है मंजूषा।। रंग-बिरंगे फूल जहाँ हो, वही चमन अच्छा लगता है। ममता-प्यार-दुलार करे जो, वो साथी सच्चा लगता है।। जन्मभूमि का मान बढ़ाये, वो ही तो सपूत कहलाता। खाये यहाँ का-गाये वहाँ का, माता का वो दूध लजाता।। फूलों की रक्षा करने को, काँटे होते हैं उपवन में इसीलिए तो तिरछी उँगली, करनी पड़ती है जीवन में। टेढ़ी उँगली मक्कारी की, मजबूरी में ही अपनाओ। सीधी उँगली से इंगित कर, सबको सीधी राह बताओ।। |
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मंगलवार, 11 अक्तूबर 2022
कविता "सुमन इकट्ठे रहें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसमयानुरूप सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएं