मित्रों! 16 अक्तूबर, 2016 को निम्न गीत लिखा था, परन्तु इस गीत की कुछ पंक्तियों में थोड़ा बदलाव करके बहुत से लोगों ने इस गीत को अपने नाम से यू-ट्यूब पर लगा दिया है। देश के धन को देश में रखना, बहा न देना नाली में। मिट्टी के ही दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में।। बने जो अपनी माटी से वो दीप बिकें बाजारों में, भरी हुई है वैज्ञानिकता. अपने सब त्यौहारों में, राष्ट्र हितों का गला घोंटकर छेद न करना थाली में। मिट्टी के ही दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में।। त्यौहारों पर अब गरीब की, जेब कभी ना खाली हो। झिलमिल नन्हें दीप जलें जब, काली नहीं दिवाली हो। देश की सीमा रहे सुरक्षित चूक न हो रखवाली में। मिट्टी के ही दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में।। रहे देश की दौलत अपने ही लोगों की झोली में। मिलता है आनन्द हमेशा, अपनी ही रंगोली में। योगदान है सबका होता जनता की खुशहाली में। मिट्टी के ही दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में।। वस्तु स्वदेशी अपनाने का आओ हम सब प्रण कर लें, अपने उत्पादन से अपना, दामन खुशियों से भर लें। गले मिलें सब लोग देश के, होली, ईद-दिवाली में। मिट्टी के ही दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में।। |
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सोमवार, 24 अक्तूबर 2022
गीत "होली, ईद-दिवाली में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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योगदान है सबका होता
जवाब देंहटाएंजनता की खुशहाली में।
मिट्टी के ही दिये जलाना,
अबकी बार दिवाली में।। - इन पंक्तियों से एक कार्ड बन कर डाल रहे हैं, आपके नाम के साथ । धन्यवाद!