-- आई चौदस रूप की, चहक रहे घर द्वार। कुटिया-महलों में सजे, झालर-बन्दनवार।१। -- सारी दुनिया से अलग, भारत के अंदाज। दीपक यम के नाम का, जला दीजिए आज।२। -- साफ-सफाई को करो, सुधरेगा परिवेश। देती नरकचतुर्दशी, सबको यह सन्देश।३। -- जन्मे थे धनवन्तरी, करने को कल्याण। रहें निरोगी सब मनुज, जब तक तन में प्राण।४। -- भेषज लाये धरा से, धन्वन्तरि भगवान। वैद्यराज संसार को, देते जीवनदान।५। -- रोग किसी के भी नहीं, आये कभी समीप। सबके जीवन में जलें, हँसी-खुशी के दीप।६। -- त्यौहारों की शृंखला, पावन है संयोग। इसीलिए दीपावली, मना रहे सब लोग।७। -- कुटिया-महलों में जलें, जगमग-जगमग दीप। सरिताओं के रेत में, मोती उगले सीप।८। -- पंचपर्व की शृंखला, लाती हर्ष-उमंग। प्यार और उपहार के, भारत में हैं रंग।९। -- मौसम शीतल सा हुआ, गर्मी का अवसान। ऋतुओं के अनुकूल ही, पहनों अब परिधान।१०। -- |
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शनिवार, 22 अक्तूबर 2022
दोहे "त्यौहारों की शृंखला" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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