-- स्वप्न पलते रहे, रूप छलते रहे। रोशनी
के बिना, दीप जलते रहे।। -- अश्रु
सूखे हुए, मीत रूठे हुए, वायदे
प्यार के, रोज झूठे
हुए, आज झनकार के तार टूटे हुए, राख
में अधजले दिल सुलगते रहे। रोशनी
के बिना, दीप जलते रहे।। -- नभ
में निखरी हुई चाँदनी खल गयी, हारकर
वर्तिका, नेह बिन जल गयी, कारवाँ
लुट गया, रात भी ढल गयी, काल
के चक्र जीवन निगलते रहे। रोशनी
के बिना, दीप जलते रहे।। -- उर
के कोटर में अब प्रीत पलती नहीं, सुख
की धारा, धरा से निकलती नहीं, सीप अब मोतियों को उगलती नहीं, स्वप्न सारे सवालों में ढलते रहे। रोशनी
के बिना, दीप जलते रहे।। -- क्या
करूँ ये सितारों से पूरित गगन, क्या करूँ ये सुहाना-सुहाना पवन, क्या
करूँ चाँदनी
का अनूठा बदन, “रूप” अरमान के हाथ मलते रहे। रोशनी
के बिना, दीप जलते रहे।। |
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सोमवार, 31 अक्तूबर 2022
गीत "दीप जलते रहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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व्यथित हृदय की भावनाओं का सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-11-22} को "दीप जलते रहे"(चर्चा अंक-4598) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंक्या करूँ ये सितारों से पूरित गगन,
जवाब देंहटाएंक्या करूँ ये सुहाना-सुहाना पवन,
क्या करूँ चाँदनी का अनूठा बदन,
“रूप” अरमान के हाथ मलते रहे।
रोशनी के बिना, दीप जलते रहे।।
अति सुन्दर
बहुत सुंदर भावों वाला गीत ।
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन।