गाँव-गली और बाजारों में घूम रहीं हैं टोली। हुल्लड़ और धमाल मचाने, फिर से आई होली।। कोई पीकर भंग नाचता, कोई सुरा चढ़ाए, कोई राग-रागनी गाता, कोई ढोल बजाए, मस्तक-चेहरों पर चित्रित है लाल-हरी रंगोली। हुल्लड़ और धमाल मचाने, फिर से आई होली।। पश्चिम से पछुवा चलती है, पूरब से पुरवाई, जाड़े का अब अन्त हो गया, रुत गर्मी की आई, अम्बुआ की गदराई डालों पर, कोयल है बोली। हुल्लड़ और धमाल मचाने, फिर से आई होली।। हरी बालियों ने गेहूँ की, धारा रूप सलोना, दूर-दूर तक खेतों में, कंचन का बिछा बिछौना, डर लगता है घन जब नभ में, करता आँखमिचौली। हुल्लड़ और धमाल मचाने, फिर से आई होली।। जन-गण-मन की है अभिलाषा, रूठे मिलें गले से, होली लेकर आती आशा, रिश्ते बनें भले से, कल तक जो थे अलग-थलग, वो बन जाएँ हमजोली। हुल्लड़ और धमाल मचाने, फिर से आई होली।। -- |
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रविवार, 5 मार्च 2023
होली गीत "लाल-हरी रंगोली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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