-- व्रत-तप-पूजन के लिए, आते हैं नवरात। माँ को मत बिसराइए, बदलेंगे हालात।। नारी नर की खान है, सब देते सन्देश। सिर्फ सुनाने के लिए, उनके हैं उपदेश।। जागो अब तो नारियों, तुम हो दुर्गा रूप। तुम्हें बदलना चाहिए, मौसम के अनुरूप।। शक्ति स्वरूपा हो तुम्हीं, माता का अवतार। तुमको ही तो जगत का, करना है उद्धार।। माँ के चेहरे पर रहे, सहज-सरल मुसकान। माता से बढ़कर नहीं, कोई देव महान।। -- पूजन-अर्चन से मिले, माता का वरदान। प्रतिदिन करना चाहिए, माता का गुणगान।। -- जय दुर्गा नवरात में, बोल रहे थे लोग। बाकी पूरे सालभर, मुर्गा का उपभोग।। -- जीभ चटाखे ले रही, होठों पर हरिनाम। ऐसे लोगों से हुए, धर्म-कर्म नाकाम।। -- नहीं क्षमा के योग्य हैं, लोगों के ऐमाल। लोग कर रहे नित्य ही, झटका और हलाल।। -- कुछ को सूकर से घृणा, कुछ को गौ से प्यार। सामिष भोजन से बढ़े, आपस में तकरार।। -- सुधर जाय यदि देश के, लोगों का आहार। तब ही होगा वतन में, सब तबकों में प्यार।। -- |
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बुधवार, 29 मार्च 2023
दोहे "माता का वरदान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर रचना 👌
जवाब देंहटाएंजय माता दी 🙏
रामनवमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत ही सुंदर ❤️
जवाब देंहटाएंजय माता दी🙏