-- लुप्त हुआ है काव्य का, नभ में सूरज आज। बिनाछन्द रचना रचें, ज्यादातर कविराज।१। जिसमें हो कुछ गेयता, काव्य उसी का नाम। -- अनुच्छेद में बाँटिए, कैसा भी आलेख। छंदहीन इस काव्य का, रूप लीजिए देख।३। -- चार लाइनों में मिलें, टिप्पणियाँ चालीस। बिनाछंद के शान्त हों, मन की सारी टीस।४। -- बिन मर्यादा यश मिले, गति-यति का क्या काम। गद्यगीत को मिल गया, कविता का आयाम।५। -- अपना माथा पीटता, दोहाकार मयंक। गंगा में मिश्रित हुई, तालाबों की पंक।६। -- कथा और सत्संग में, कम ही आते लोग। यही सोचकर हृदय का, कम हो जाता रोग।७। -- गीत-ग़ज़ल में चल पड़ी, फिकरेबाजी आज। कालजयी रचना कहाँ, पाये आज समाज।८। -- देकर सत्साहित्य को, किया धरा को धन्य। तुलसी, सूर-कबीर से, हुए न कोई अन्य।९। -- |
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रविवार, 19 मार्च 2023
दोहे "गति-यति का क्या काम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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