किन्तु काँटों से बड़ा कोई पड़ोसी न मिला। दूर घाटी में चहकते हुए इन फूलों को, संग और साथ निभाने को हितैषी न मिला।। बन्द पलकों में सजे स्वप्न चाँद-तारों के, जब खुली आँख हुए दूर भ्रम नज़ारों के, अज़नबी शहर में कोई भी स्वदेशी न मिला। संग और साथ निभाने को हितैषी न मिला।। टेढ़ी-मेड़ी थी डगर, ज़िन्दगी की मंजिल की, देख तूफान को बढ़ जाती थी धड़कन दिल की, सिर छिपाने को, कहीं द्वार-दरेशी न मिला। संग और साथ निभाने को हितैषी न मिला।। हर मुहल्ले, गली-चौराहे और बस्ती में, लोग मशग़ूल दिखे, हमको बुतपरस्ती में, जो करम हम पे करे, ऐसा उवैसी न मिला। संग और साथ निभाने को हितैषी न मिला।। |
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मंगलवार, 16 अगस्त 2011
"गीत-...हितैषी न मिला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत सही लिखा है आपने -
जवाब देंहटाएंहमने देखे हैं बहुत दोस्त और दुश्मन भी,
किन्तु काँटों से बड़ा कोई पड़ोसी न मिला
टेढ़ी-मेड़ी थी डगर, ज़िन्दगी की मंजिल की,
जवाब देंहटाएंदेख तूफान को बढ़ जाती थी धड़कन दिल की,
वाह सर ।
सादर
सटीक तथ्यों की अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति.... कहते हैं..
जवाब देंहटाएंदोस्त बन बन के मिले, मुझे मिटाने वाले
मैंने देखे है कई रंग बदलने वाले....
mere paas shabd nahi hain!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंरामराम.
हर मुहल्ले, गली-चौराहे और बस्ती में,
जवाब देंहटाएंलोग मशग़ूल दिखे, हमको बुतपरस्ती में,
जो करम हम पे करे, ऐसा उवैसी न मिला।
संग और साथ निभाने को हितैषी न मिला।।
सबका यही हाल है सुन्दर प्रस्तुति
अच्छी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंजिसे चाहो वो कहां मिलता है?...मेरे ही एक शेर पर ग़ौर फ़रमाएं-
जवाब देंहटाएंमैंने चाहा है बहुत जिसको जान-वो-दिल की तरह, बस वही दूर हुआ जा रहा मंजिल की तरह।
अथवा-
कभी किसी को मुक़म्मल जहां नहीं मिलता...
इसी मे संतोष करना पड़ेगा ज़नाब!...बहुत सुन्दर रचना
कृपया इसे भी देखें-
जवाब देंहटाएंएक 'ग़ाफ़िल' से मुलाक़ात याँ पे हो के न हो
सरलता से व्यक्त की गयी गहरी अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंजब खुली आँख दूर हुए भ्रम नजारों के ...
जवाब देंहटाएंकाँटों से बड़ा कोई पडोसी ना मिला !
बेहतरीन !
बेहद ख़ूबसूरत और सटीक लिखा है आपने! लाजवाब रचना!
जवाब देंहटाएंहर मुहल्ले, गली-चौराहे और बस्ती में,
जवाब देंहटाएंलोग मशग़ूल दिखे, हमको बुतपरस्ती में,
जो करम हम पे करे, ऐसा उवैसी न मिला।
संग और साथ निभाने को हितैषी न मिला।।इसीलिए लिए तो कहा गया -
रफीकों से रकीब अच्छे जो जलके नाम लेतें हैं ,
गुलों से खार बेहतर हैं जो दामन थाम लेतें हैं .
. August 16, 2011
उठो नौजवानों सोने के दिन गए ......http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
सोमवार, १५ अगस्त २०११
संविधान जिन्होनें पढ़ लिया है (दूसरी किश्त ).
http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, १६ अगस्त २०११
त्रि -मूर्ती से तीन सवाल .
" sahi kaha hai aapne ..ye rachana ne dil jeet liye .."
जवाब देंहटाएंhttp://eksacchai.blogspot.com
सिर छिपाने को, कहीं द्वार-दरेशी न मिला।
जवाब देंहटाएंसंग और साथ निभाने को हितैषी न मिला।।
sundar bhaav
खूबसूरत अभिव्यक्ति...आभार.
जवाब देंहटाएंमेरे प्यारे वतन, जग से न्यारे वतन।
जवाब देंहटाएंमेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
अपने पावों को रुकने न दूँगा कहीं,
मैं तिरंगे को झुकने न दूँगा कहीं,
तुझपे कुर्बान कर दूँगा मैं जानो तन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
अच्छे भाव
सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!
man-mohak rachna guru ji
जवाब देंहटाएंसाम-दाम औ’ दण्ड की, हुई करारी हार।
जवाब देंहटाएंसत्याग्रह के सामने, डाल दिये हथियार।४।
गंभीर प्रभाव छोडते , निपुण दोहे सुंदर बन पड़े हैं , साधुवाद सर ../