बढ़ेंगे तुम्हारी तरफ धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। नया है मुसाफिर, नयी जिन्दगी है, नया फलसफा है, नयी बन्दगी है, पढ़ेंगे-लिखेंगे, बरक धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। उल्फत की राहों की सँकरी गली है, अभी सो रही गुलिस्ताँ की कली है, मिटेगा दिलों का फरक धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। दुर्गम डगर में हैं चट्टान भारी, हटानी पड़ेंगी, परत आज सारी, परबत बनेंगे, सड़क धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। |
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शनिवार, 6 अगस्त 2011
"पढ़ेंगे-लिखेंगे, बरक धीरे-धीरे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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vah keya baath hai sastri ji
जवाब देंहटाएंkamal ka
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें ||
ये तो जबरदस्त अंदाज है --
गेय--
मेरे जैसा असुर भी बड़े आराम
से गा सकता है ||
bahut pyari ghazal gungunaane ko ji chahta hai.
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरती से लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंExcellent creation ! Shastri ji , You fascinate me !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएंकिस-किस की तारीफ़ करूँ हर बन्द सुहाना लगता है।...वाह! शास्त्री जी! आप हर विधा के धुरन्धर हैं मल्टी टेलेण्टेड...वधाई और आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव समन्वय्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत ही प्यारी कविता। बधाई।
जवाब देंहटाएं------
कम्प्यूटर से तेज़...!
सुज्ञ कहे सुविचार के....
bhaut sundar...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ....सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंधीरे सब कुछ होय।
जवाब देंहटाएंsab kahenge haraf dhire dhire......bahut sundar shastri ji
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढि़या .।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
उल्फत की राहों की सँकरी गली है,
जवाब देंहटाएंअभी सो रही गुलिस्ताँ की कली है,
मिटेगा दिलों का फरक धीरे-धीरे।
apki soch samajh ,durdarshita ko pranam ,nihsandeh , aap aur srijan
dono sarahaniya hain .... / shukriya sir.
उल्फत की राहों की सँकरी गली है,
जवाब देंहटाएंअभी सो रही गुलिस्ताँ की कली है,
मिटेगा दिलों का फरक धीरे-धीरे।
जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।।
bahut khoob
lazvab geet
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल! बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंvery nice, Umda gajal prastuti
जवाब देंहटाएं