(१) अरे मुन्ना भाई नहीं-नहीं जी, अब तो मैं हूँ अन्नाभाई (२) शराब वही बोतल नई कैसी रही (३) रूप बदला है ऐब छिपाया है धोखा देने के लिए (४) गद्य लिखता हूँ लाइनों को तोड़ कर कविता बन जाती है (५) शब्द गौण हैं अर्थ मौन हैं इसीलिए श्रेष्ठ रचना है |
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chand panktiyon me itna kuchh!
जवाब देंहटाएंवाह ! वाह! क्या बात है! छोटी सी सुन्दर पंक्तियों में आपने बहुत कुछ कह दिया! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंNice post .
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढि़या प्रस्तुति ..आभार ।
जवाब देंहटाएंNice post .
जवाब देंहटाएंजय हो
जवाब देंहटाएंमै सबको लिखता देख के सोचा,
मै भी कवि बन जाउं
ati sundar
जवाब देंहटाएंbahut sachchi evam manoranjak lagi seepikaayen....aabhar.
जवाब देंहटाएंWAAH BAHUT UMDA
जवाब देंहटाएंसुन्दर सीपियाँ ! बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर तारीफ के काबिल
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सुन्दर...
जवाब देंहटाएंdr.saheb samundar se nikali shipiya pasand aayi sadhuwad
जवाब देंहटाएंसिपिकाओं की धार
जवाब देंहटाएंनयी कविता पर मार
शब्द रहे गौण
अर्थ रहे मौन
श्रेष्ठ रचनाकार
हैं भला कौन ?
अच्छी प्रस्तुति
कल हलचल पर आपके पोस्ट की चर्चा है |कृपया अवश्य पधारें.....!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सीपियाँ. मोती भरे हैं इनमे
जवाब देंहटाएंअनमोल और सुंदर सीपियां.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
इन्हीं सीपियों ने अपने अंदर मोतियों को छुपाया है।
जवाब देंहटाएंहर क्षणिका कटाक्ष करती हुयी।
जवाब देंहटाएंगद्य लिखता हूँ
जवाब देंहटाएंलाइनों को तोड़ कर
कविता बन जाती है
-यही हो रहा है आजकल...सो ही यहाँ भी हुआ...मगर मारक रहा!!
बहुत बढ़िया,अनमोल कविता
जवाब देंहटाएंगद्य लिखता हूँ
जवाब देंहटाएंलाइनों को तोड़ कर
कविता बन जाती है........बढ़िया कही !!