पेंग बढ़ाकर नभ को छू लें, झूला झूलें सावन में। मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। मँहगाई की मार पड़ी है, घी और तेल हुए महँगे, कैसे तलें पकौड़ी अब, पापड़ क्या भूनें सावन में। मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। हरियाली तीजों पर, कैसे लायें चोटी-बिन्दी को, सूखे मौसम में कैसे, अब सजें-सवाँरे सावन में। मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। आँगन से कट गये नीम,बागों का नाम-निशान मिटा, रस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में। मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।। (चित्र गूगल छवि से साभार) |
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सोमवार, 1 अगस्त 2011
"झूला झूलें सावन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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आँगन से कट गये नीम,बागों का नाम-निशान मिटा,
जवाब देंहटाएंरस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में।
यही तो आपकी खासियत है शास्त्री जी कि बिना किसी नारे के, बिना किसी शोर शराबे के, आप किसी ज्वलंत समस्या को थमा देते हैं, विचार करने के लिए।
बहुत खूब!
सावन सा बरसता सावन का गीत।
जवाब देंहटाएंshriman ji aapaka blog dekhane ka awasar mila khoob aanad aaya .rochakva samichin rachanaye badhiya lagi namasakar dr,ji
जवाब देंहटाएंआपके गीत उत्सव हैं.. आपके गीत परंपरा है...
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ बदल गया पर वास्तविकता और सुन्दरता कविता में तो बची है...बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसावन छा गया है आप के ब्लॉग पर शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सावन का गीत|
जवाब देंहटाएंसुंदर सावन का गीत....
जवाब देंहटाएंआँगन से कट गये नीम,बागों का नाम-निशान मिटा,
जवाब देंहटाएंरस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में।
आपने सच कहा है
लेकिन हमारे आंगन में अब भी दूसरे पेड़ों के साथ एक बड़ा सा दरख्त अंजीर का खड़ा है। बच्चियां उसी में झूला डालकर झूलती हैं और सामने ही बने पुराने मकान में बरामदे में कड़ियों के बीच एक बेलन भी झूले के लिए ही हमारे दादा हुज़ूर का लगवाया हुआ आज भी है।
आपका गीत सच बयान करता है और आपका लगाया फ़ोटो एक स्वप्निल संसार में ले जाता है।
हाय , बचपन !
मासूम बचपन !!
बड़े होकर हमने खो दिया है ज़्यादा और पाया है कम, बहुत कम !!!
आप एक ऐसे साहित्यकार हैं जिनका साहित्य न केवल साहित्य के मानकों पर खरा उतरता है बल्कि उसमें समाज के लिए सकारात्मक संदेश भी होता है। आपकी रचनाओं को देखकर साहित्य सृजन के बारीक पहलुओं को भी सहज ही समझा जा सकता है। प्रस्तुत रचना इसी का एक उदाहरण है.
"ब्लॉगर्स मीट वीकली में सभी ब्लॉगर्स का हार्दिक स्वागत है"
बड़ी बुरी परिस्थिती है इस बदलते परिवेश मे आधुनिकता रीति रिवाजो , खेलो को निगलती जा रही है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत सावन का गीत! चित्र भी बहुत सुन्दर लगा!
जवाब देंहटाएंbhaut hi sunder rachna...
जवाब देंहटाएंमँहगाई की मार पड़ी है, घी और तेल हुए महँगे,
जवाब देंहटाएंकैसे तलें पकौड़ी अब, पापड़ क्या भूनें सावन में।
bhut sundar rachna
kabhi hamare blog par akar kuch hame bhi sikhye
vikasgarg23.blogspot.com
kya kehne shastri ji ke
जवाब देंहटाएंsawan ka sunder geet ......
जवाब देंहटाएंHi I really liked your blog.
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