मुद्रा का निरन्तर प्रकाशन,
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वादाखिलाफी है
नहीं है सम्बन्घ।
जाग उठे हैं खुद्दार,
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प्रेरक रचना | आभार शास्त्री जी |
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंआज के हालातों पर सार्थक !
जवाब देंहटाएंआज के वक़्त की आवाज़ ....और सच्चाई भी ......आभार
जवाब देंहटाएंअच्छी आशा लिए कविता .आपका सपना पूरा हो तो भारत वर्ष के लिए बेहतर रहेगा.बधाई
जवाब देंहटाएंआपका सपना पूरा हो -भ्रष्टाचार का पूर्ण रूप से सफाया हो जाना चाहिए .आभार .
जवाब देंहटाएंBHARTIY NARI
बाँदल छटेंगे,
जवाब देंहटाएंउदित होगा भास्कर।
घोटाले घटेंगे,
सुख देगा दिनकर।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! प्रेरक और सार्थक रचना!
फिर से चलने लगी है,
जवाब देंहटाएंजनता की नब्ज़।
अब हो रहा है,
शासकों को कब्ज़।
बढ़िया रचना सर ... भ्रष्टाचार का आवरण हटे यही शुभासा है.. सादर...
अन्ना हजारे,
जवाब देंहटाएंगांधी का अवतार।
हिल उठी है,
काले अंग्रेजों की सरकार।
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सत्य वचन्…………यही है आज की आवाज़्।
प्रेरक रचना |
जवाब देंहटाएंअब चलता रहेगा,
जवाब देंहटाएंऐसे ही जागरण।
छँट जाएगा मेरे देश से,
भ्रष्टाचार का आवरण।
मन में है विश्वास तो
शुद्ध होगा पर्यावरण
तप किया है,क्यों ना होगा
निर्मल हर आचरण.
प्रेरक अकविता.
कमाल है, कमाल है, कमाल है शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंआप को जब भी बांचता हूँ ..नव ऊर्जा का संचार होता है
धन्यवाद !
देश के कार्य में अति व्यस्त होने के कारण एक लम्बे अंतराल के बाद आप के ब्लाग पे आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुन्दर प्रेरक रचना !!!!!!
आपका बहुत बहुत आभार!!!!
कविता की शुभेच्छाएं पूर्ण हो ...
जवाब देंहटाएंआभार!
सही,सटीक,सामयिक और प्रेरक क्षणिकाएं.
जवाब देंहटाएंआज सब मिल कर देश को अभिमान दें।
जवाब देंहटाएंवादाखिलाफी है
जवाब देंहटाएंटूटते हुए अनुबन्ध।
स्वप्न का हकीकत से,
नहीं है सम्बन्घ।
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फिर से चलने लगी है,
जनता की नब्ज़।
अब हो रहा है,
शासकों को कब्ज़।....
Great expression .
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