जिस उपवन में पढ़े-लिखे हों रोजी को लाचार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। जिनके बंगलों के ऊपर, निर्लज्ज ध्वजा लहराती, रैन-दिवस चरणों को जिनके, निर्धन सुता दबाती, जिस आँगन में खुलकर होता सत्ता का व्यापार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। मुस्टण्डों को दूध-मखाने, बालक भूखों मरते, जोशी, मुल्ला, पीर, नजूमी, दौलत से घर भरते, भोग रहे सुख आजादी का, बेईमान मक्कार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। वयोवृद्ध सीधा-सच्चा, हो जहाँ भूख से मरता, सत्तामद में चूर वहाँ हो, शासक काजू चरता, ऐसे निष्ठुर मन्त्री को, क्यों झेल रही सरकार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। |
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शनिवार, 27 अगस्त 2011
"उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंवाह ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
sastri ji
वयोवृद्ध सीधा-सच्चा,
जवाब देंहटाएंहो जहाँ भूख से मरता,
सत्तामद में चूर वहाँ हो,
शासक काजू चरता,
वह ! सर क्या बात कही है आपने ,आईना दिखाया है , क्या फर्क पड़ता है, मोटी खाल को ,मर चूका है,आँखों का पानी,ह्रदयकी,संवेदना ....... बहुत ही अच्छा लिखा है ,सम्माननीय सृजन..../
दिन बहुरेंगे।
जवाब देंहटाएंसच्ची सच्ची... खरी खरी...
जवाब देंहटाएंसादर...
steek prastuti...teekha prahaar..
जवाब देंहटाएंअरि आज तो बधाई गाओ रंग महल में ,अन्ना जी की आरती गाओ रंग महल में ,जन गण मन की आरती गाओ रंग महल में .
जवाब देंहटाएंऐसे निष्ठुर मन्त्री को, क्यों झेल रही सरकार।
जवाब देंहटाएंउस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
शास्त्री जी!
निराश न हों, मंत्रियों के होश अब ठिकाने लगने लगे हैं। देर है अंधेर नहीं होने पाएगा।
bahut uttam prastuti ab to bhrasht mantriyon ko hataane ka samay bhi aa gaya.shayad ab koi yesa achcha mantri aaye jiski prashansa me yah kalam chale.
जवाब देंहटाएंजिस उपवन में पढ़े-लिखे हों रोजी को लाचार।
जवाब देंहटाएंउस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
bilkul sahi kaha
जिस उपवन में पढ़े-लिखे हों रोजी को लाचार।
जवाब देंहटाएंउस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
So very true !
.
शास्त्रीजी, बच्चे का स्वास्थ्य कैसा है? आशा है परेशानी दूर हो गयी होगी। उसे स्नेहाशीष।
जवाब देंहटाएंbehtreen prstuti....
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