धरा ने रंग विखराए। खुशी से खिल उठे चेहरे, दिवस त्यौहार के आए।। सुशोभित कमल सुन्दर हैं, सजे फिर से सरोवर हैं, सिँघाड़ों की फसल फिर से, हमारे ताल ले आये। खुशी से खिल उठे चेहरे, दिवस त्यौहार के आए।। बढ़ी बाजार में रौनक, दिये जलने लगे जग-मग, फसल को धान की पाकर, कृषक-मजदूर मुस्काए। खुशी से खिल उठे चेहरे, दिवस त्यौहार के आए।। विजय का पर्व आया है, दिवाली साथ लाया है, सभी यह कामना करते. कलुषता-मैल मिट जाए। खुशी से खिल उठे चेहरे, दिवस त्यौहार के आए।। |
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रविवार, 9 अक्तूबर 2011
" दिवस त्यौहार के आए" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जवाब देंहटाएंदीपावली के पावन पर्व की अग्रिम शुभकामनाओं सहित आदरणीय शास्त्री जी को उनकी इस सुंदर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई व आभार…
जवाब देंहटाएंदीप-हृद जगमगायें हैं...
जवाब देंहटाएंमहकता गन्ध से उपवन,
जवाब देंहटाएंधरा ने रंग विखराए।
खुशी से खिल उठे चेहरे,
दिवस त्यौहार के आए।।
धर्म, पर्व किसी भी रूप में सिर्फ और सिर्फ दिखावे के लिए नहीं बनाये गये हैं। कहीं न कहीं इनके द्वारा मानव को कुछ न कुछ सीख भी देने का कार्य किया जाता है .
अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंदीपावली की तैयारी का सुंदर चित्रण।
Bahut hi sundar...
जवाब देंहटाएंDipawali parv ki shubhkamnaye.
खूबसूरत प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
बहुत सुन्दर, सरस गीत सर...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
कलुषता-मैल मिट जाए।
जवाब देंहटाएंखुशी से खिल उठे चेहरे,
दिवस त्यौहार के आए।।
खुबसूरत सदाबहार रचना सर ! कविता के साथ पावन पर्वों की खुशीयाँ मुबारक /
बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
जवाब देंहटाएंआते त्यौहार की सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब कहा है आपने
जवाब देंहटाएंबधाई उत्कृष्ट रचना के लिए......
महर्षि निर्वाण दिवस भी आ रहा है आप क्या कर रहे हैं आशा है खुबसूरत सदाबहार रचना मिलेगी.......
आते त्यौहार की सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
rachna ke saath saath singhaade bhee meethay hain!!
जवाब देंहटाएंवाह , सिंघाड़े पर पर भी शानदार प्रस्तुति । पर्व की खुशियाँ यत्र तत्र बिखरी हुयी हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर खुशियो का आगमन दर्शाती प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबधाई ||
एक सुन्दर भाव लिए रचना |
जवाब देंहटाएंबधाई
आशा
बहुत ही अच्छी रचना,दीपावली की बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी सिंघाडों की याद दिला दी। यहाँ उदयपुर में कभी-कभार ही दर्शन होते हैं। जयपुर में तो भरमार थी। बहुत सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंऋतुरंजित यह रचना .. बहुत सुन्दर
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