मितवा मुस्काए देखो बन्दन वार सुधि की तितली आई है मन के द्वार झाड़-पोंछ फेंक आई जीवन की कुण्ठा घर की हर एक दिशा आज लूँ सँवार बरखा की रिमझिम है बून्दों का शोर आया मधुमासों पर मादक निखार वृक्षों पर चहकी है मैना मतवाली जंगल में मोरों के नृत्य की झंकार आज प्रीत आँचल उड़ाती हमारा उनके सपने आये नयनों के द्वार श्रीमती आशा शैली "हिमाचली" |
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रविवार, 30 अक्तूबर 2011
"गीत-आशा शैली" (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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आज प्रीत आँचल उड़ाती हमारा
जवाब देंहटाएंउनके सपने आये नयनों के द्वार
बहुत खूब
bahut khub
जवाब देंहटाएंबड़ी ही प्रवाहमयी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर मनभावन गीत लगा.
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई.
उनके सपने आये नयनों के द्वार...
जवाब देंहटाएंवाह! सुन्दर गीत...
सादर....
आशा जी का गीत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंकल 01/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और मनमोहक गीत !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति व प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंwaah... bahut khoob...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
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