जगदम्बा
के रूप में, रहती है हर ठाँव।
माँ
के आँचल में सदा, होती सुख की छाँव।१।
ममता का जिसकी
नहीं, होता कोई अन्त।
माँ के ही दिल में
बसा, करुणा-प्यार अनन्त।२।
मतलब का संसार है,
मतलब के उपहार।
लेकिन दुनिया में नहीं,
माता जैसा प्यार।३।
लालन-पालन
में दिया, ममता और दुलार।
बोली-भाषा
को सिखा, माँ करती उपकार।४।
होता
है सन्तान का, माता का सम्वाद।
माता
को करते सभी, दुख आने पर याद।५।
नारायण
से भी बड़ी, नारी की है जात।
सृजन
कर रही सृष्टि का, इसीलिए है मात।६।
पत्नी, पुत्री, बहन
का, मात-पिता का प्यार।
उनको
ही मिलता सदा, जिनका हृदय उदार।७।
जिसके
सिर पर हो सदा, माता का आशीष।
वो
ही तो कहलायगा, वाणी का वागीश।८।
माता
केवल एक है, गुणवाची हैं “रूप”।
माता
की सन्तान हैं, रंक-भिखारी-भूप।९।
|
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गुरुवार, 10 जुलाई 2014
"दोहे-माँ-ममता और दुलार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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माँ की ममता की कोई बराबरी नही क़र सकता। बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.07.2014) को "कन्या-भ्रूण हत्या " (चर्चा अंक-1671)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंजिसके सिर पर हो सदा, माता का आशीष।
वो ही तो कहलायगा, वाणी का वागीश।८।
बहुत सुंदर !
अति सुन्दर ....मर्मस्पर्शी दोहे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना का लिंक कल दिनांक - ११ . ७ . २०१४ को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंमित्र! माताजी को मेरा प्रणाम ! बहुत भावुकता-पूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंमाताजी को मेरा प्रणाम-
आभार आदरणीय-
सादर नमन
जवाब देंहटाएंमाँ जैसा प्यार ममता और भला किसकी !!
जवाब देंहटाएंबढ़िया गीत !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति सर...बधाई
जवाब देंहटाएं