![]() कर्कश सुर से तो होती है, खामोशी की तान भली
जल जाता शैतान पतिंगा, शम्मा सारी रात जली
दो पल का तूफान, तबाही-बरबादी को लाता है
कभी न थकती मन्द हवा, जो लगातार दिन-रात चली
बचपन-यौवन साथ न देता, कभी किसी का जीवन भर
सिर्फ बुढ़ापे के ही संग में, इस जीवन की शाम ढली
सूखे भी हों पात शज़र के, वो छाया ही देते हैं
छलते हैं मुस्कानों से, ग़ुलशन के छलिया फूल-कली
करता दग़ा हमेशा है ये, नहीं “रूप” पर जाना तुम
अब तक समझ नही पाया हूँ, क्यों होता है हुस्न छली
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वाह बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10-07-2014 को चर्चा मंच पर उम्मीदें और असलियत { चर्चा - 1670 } में दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
कल 11/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं का बहुत बड़ा प्रसंशक हु.....बेहतरीन लिखते हैं सर!!!
जवाब देंहटाएंbadhiya likha hai ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति..
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