आज बहुत है नया-नवेला,
कल को होगा यही पुराना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
गोल-गोल है दुनिया सारी,
चन्दा-सूरज गोल-गोल है।
गोल-गोल में घूम रहे सब,
गोल-गोल की यही पोल है।
घूम-घूमकर, सारे जग को,
बना रहा है काल निशाना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
दिन दूनी औ’ रात चौगुनी,
बढ़ती जातीं अभिलाषाएँ।
देश-काल के साथ बदलतीं,
पाप-पुण्य की परिभाषाएँ।
धन संचय की होड़ लगी है,
लेकिन साथ नहीं कुछ जाना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
कहीं सरल हैं कहीं वक्र हैं,
बहुत कठिन जीवन की राहें।
मंजिल पर जानेवालों की,
छोटे पथ पर लगी निगाहें।
लेकिन लक्ष्य उसे ही मिलता,
जिसने सही मार्ग पहचाना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
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रविवार, 27 जुलाई 2014
"गीत-आज और कल का भेद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सच कहा है ... आना जाना लगा रहेगा ... कल आज और आज कल हो जाएगा ... दार्निश्कता लिए सुन्दर गीत ....
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - 28 . 7 . 2014 को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
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