पर्वत से चलकर आते हैं,
कलकल नाद सुनाते हैं।
बाधाओं से मत घबड़ाना,
निर्झर हमें सिखाते हैं।।
लक्ष्य सदा आगे को बढ़ना,
निर्मल नीर बहाना है।
सूखी धरती सिंचित करके,
फिर उर्वरा बनाना है।
नद-नालों को पावन जल से,
आप्लावित कर जाते हैं।
बाधाओं से मत घबड़ाना,
निर्झर हमें सिखाते हैं।।
शोर-मचाते हँसते गाते,
दुर्गम-सुगम ठिकानों में।
बालू, कंकड़-पत्थर लाते,
पर्वत से मैदानों में।
ये बिन लहरों के सोते हैं,
लहर-लहर लहराते हैं।
बाधाओं से मत घबड़ाना,
निर्झर हमें सिखाते हैं।।
प्रेम-प्रीत करने वालों को,
झरने ही सुख देते हैं।
जग की झंझावातों को,
ये पलभर में हर लेते हैं।
जीवन की परिभाषाओं का,
सबको सार बताते हैं।
बाधाओं से मत घबड़ाना,
निर्झर हमें सिखाते हैं।।
|
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सोमवार, 14 जुलाई 2014
"निर्झर हमें सिखाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया मनमोहक रचना आदरणीय धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना और सुंदर प्रस्तुति: जीवंत निर्झर की तस्वीर बच्चों के मान को खूब भाएगी. मैं अपने बच्चों को आपकी यह रचना पढ़ने और समझने वाला हूँ. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंप्रेम-प्रीत करने वालों को,
जवाब देंहटाएंझरने ही सुख देते हैं।
जग की झंझावातों को,
ये पलभर में हर लेते हैं।
बहुत बढ़िया
Ati sunder rachna .......
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