आई बसन्त-बहार, चलो होली खेलेंगे!! रंगों का है त्यौहार, चलो होली खेलेंगे!! बागों में कुहु-कुहु बोले कोयलिया, धरती ने धारी है, धानी चुनरिया, पहने हैं फुलवा के हार, चलो होली खेलेंगे!! हाथों में खन-खन, खनके हैं चुड़ियाँ. पावों में छम-छम, छनके पैजनियाँ, चहके हैं सोलह सिंगार, चलो होली खेलेंगे!! कल-कल बहती है, नदिया की धारा. सजनी को लगता है साजन प्यारा, मुखड़े पे आया निखार, चलो होली खेलेंगे!! उड़ते अबीर-गुलाल भुवन में, सिन्दूरी-सपने पलते सुमन में, महके है मन में फुहार! चलो होली खेलेंगे!! |
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शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015
"होली गीत-महके है मन में फुहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत अच्छा और रंगों से सरोबार होली गीत प्रस्तुत किया है आपने। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर होली गीत.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत...होली की दस्तक सुनाई देने लगी है...
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंन्यू पोस्ट हिमालय ने शीश झुकाया है !
न्यू पोस्ट अनुभूति : लोरी !
आज 01/मार्च/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर