मन के सूने से मन्दिर में,
आशा का दीप जलाया क्यों?
वीराने जैसे उपवन में,
सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों?
प्यार, प्यार है पाप नही है,
इसका कोई माप नही है,
यह तो है वरदान ईश का,
यह कोई अभिशाप नही है,
दो नयनों के प्यालों में,
सागर सा नीर बहाया क्यों?
वीराने जैसे उपवन में,
सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों?
मुस्काओ स्वर भर कर गाओ,
नगमों को और तरानों को,
गुंजायमान करदो फिर से,
इन खाली पड़े ठिकानों को,
शीशे से भी नाजुक दिल मे,
गम का अम्बार समाया क्यों?
वीराने जैसे उपवन में,
सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों?
स्वप्न सलोने जो आये हैं,
उनको आज धरातल दे दो,
पतझड़ के मारे पादप को,
गंगा का निर्मल जल दे दो,
रस्म-रिवाजों के कचरे से,
यह घर-द्वार सजाया क्यों?
वीराने जैसे उपवन में,
सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों?
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रविवार, 12 जुलाई 2015
"आशा का दीप जलाया क्यों?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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