मर्यादा से हो
सजा, जीवन का परिवेश।
रामचरितमानस हमें,
देती है सन्देश।१।
--
दोहे सन्तकबीर ने,
लिक्खे कई हजार।
दिया बिहारी लाल
ने, दोहों का उपहार।२।
--
बहुत पुरानी विधा
है, दोहों की श्रीमान।
दोहों में ही निहित
है, दुनिया भर का ज्ञान।३।
--
भाषण में तो कर
दिया, भारत को सम्पन्न।
मँहगाई की मार से,
जनता हुई विपन्न।४।
--
अच्छे दिन आये
नहीं, जीना हुआ हराम।
सब्जी-चावल-दाल
के, बढ़े हुए हैं दाम।५।
--
जमाखोर उन्मुक्त
हो, भरते हैं गोदाम।
ढीली जब सरकार हो,
कैसे लगे लगाम।६।
--
पक्की सड़कों पर जहाँ,
गड्ढों का हो मेल।
कैसे फिर चल
पायेगी, गोली जैसी रेल।७।
--
जात-पात के जाल
में, उलझा है इंसान।
कैसे अपने देश का,
होगा अब उत्थान।८।
--
प्रतिभाओं का है
नहीं, भारत में सम्मान।
कैसे फिर बन
पायेगा, अपना देश महान।९।
--
यदि आवारा ऊँट को,
डाली नहीं नकेल।
तपते रेगिस्तान
में, बिगड़ जायेगा खेल।१०।
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शुक्रवार, 3 जुलाई 2015
दोहे "अपना देश महान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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