इतना सितम अच्छा नहीं अपने सरूर पे
तुम खुद ही पुरज़माल हो अपने शऊर पे
इंसानियत को दरकिनार कर दिया तुमने
इतना नशे में चूर हो अपने गुरूर पे
दिल से नहीं दिमाग़ से सोचा करो कभी
रोटी पकाना सीखिए अपने तँदूर पे
यूँ अपनी इबादत का दिखावा न कीजिए
ईमान
भी तो लाइए अपने हुजूर पे
कितना ग़ुमान “रूप” को अपने फितूर पे
गिनते नहीं हो खामियाँ अपने कसूर पे
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मंगलवार, 7 जुलाई 2015
ग़ज़ल "गिनते नहीं हो खामियाँ अपने कसूर पे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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