धान्य से भरपूर, खेतों में झुकी हैं डालियाँ। धान के बिरुओं ने, पहनी हैं नवेली बालियाँ।। क्वार का आया महीना, हो गया निर्मल गगन, ताप सूरज का घटा, बहने लगी शीतल पवन, देवपूजन के लिए, सजने लगी हैं थालियाँ। धान के बिरुओं ने, पहनी हैं नवेली बालियाँ।। सुमन-कलियों की चमन में, डोलियाँ सजने लगीं, भ्रमर गुंजन कर रहे, शहनाइयाँ बजने लगीं, प्रणय-मण्डप में मधुर, बजने लगीं हैं तालियाँ। धान के बिरुओं ने, पहनी हैं नवेली बालियाँ।। |
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शनिवार, 1 अक्तूबर 2016
गीत "धान्य से भरपूर खेतों में झुकी हैं डालियाँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत।
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