कभी चढ़ाई है यहाँ, होता कभी ढलान।
नहीं समझना सरल कुछ, जीवन का विज्ञान।।
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सच्ची होती मापनी, झूठे सब अनुमान।
ताकत पर अपनी नहीं, करना कुछ अभिमान।।
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कंचन काया को कभी, माया से मत तोल।
दौलत के अभिमान में, बुरे वचन मत बोल।।
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कभी “रूप” की धूप पर, मत करना अभिमान।
डरकर रहना समय से, समय बड़ा बलवान।।
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नहीं झेल पाया मनुज, कभी समय का वार।
ज्ञानी, राजा-रंक भी, गये समय से हार।।
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दाता के है हाथ में, सकल जगत की डोर।
हरदम उसकी रजा में, रहना भाव-विभोर।।
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कुदरत के कानून से, बचा न अब तक कोय।
जो चाहें भगवान जी, वैसा जग में होय।।
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सबसे सुन्दर जगत में, होता फूल कपास।
जीवन में इस सुमन से, छा जाता उल्लास।।
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शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016
दोहे "बुरे वचन मत बोल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर दोहे ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना एक बार फिर.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 16 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... पांच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर
ज्ञान द्रष्टा
नीति का सुन्दर संदेश !
जवाब देंहटाएं