मातृदिवस पर विशेष
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माँ ने वाणी को उच्चारण का ढंग
बतलाया है,
माता ने मुझको धरती पर चलना सिखलाया है,
खुद गीले बिस्तर में सोई, मुझे सुलाया सूखे में,
माँ के उर में ममता का व्याकरण समाया है,
इसी बात से लगाया जा सकता है कि
दुख-दर्द के समय अन्तर्मन से
एक ही स्वर वाणी पर अपने आप आ जाता
है कि ‘हाय-मैया’।
कभी विचार किया है कि यदि माँ नही
होती तो
हम दुनिया में कैसे आ पाते?
माता के प्रति हमारी कितनी अगाध
श्रद्धा और भक्ति है
इसका पता इसी बात से लग जाता है कि
देवी स्वरूपा माता के दर्शनों के लिए
पूरे वर्ष माँ के मन्दिरों में भीड़
लगी रहती है।
माता को ही जगत्-जननी का अमर पद
प्राप्त है।
आदि-शक्ति के रूप में वह हमारे मन
में
सरस्वती, पार्वती के रूप में विराजमान है।
माता को विश्व में प्रथम गुरू का
सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
‘‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि
गरीयसी।’’
मातृ-दिवस पर, हे माँ! मैं तुमको कोटि-कोटि प्रणाम
करता हूँ।
|
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शनिवार, 12 मई 2018
"माँ के उर में ममता का व्याकरण समाया है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंकाश मंदिर के साथ ही घर बैठी माँ भी हमेशा सबके लिए पूजनीय हो पाती !