स्वार्थ भरे इस जगत में, जब तक है परमार्थ।
तब-तब जग में जन्म ले, वीर धनुर्धर पार्थ।।
उसको मिलती सफलता, जो करता पुरुषार्थ।
लक्ष्य भेदने के लिए, बनना पड़ता पार्थ।।
रखो खेल की भावना, पास-फेल के संग।
चाहे जो परिणाम हो, तजना नहीं उमंग।।
सुन्दरता को देखकर, मत होना मदहोस।
पत्तों पर तो देर तक, नहीं ठहरती ओस।।
लगने लगी समाज में, अंग्रेजी की होड़।
हिन्दी की शालाओं को, लोग रहे अब छोड़।।
तन-मन को गद-गद करे, अनुशंसा का भाव।
तारीफों के शब्द से, जल्दी भरते घाव।।
अब कैसे नव सृजन हो, मनवा है हैरान।
अन्धकूप में पैंठ कर, लोग खोजते ज्ञान।।
वेदों के सन्देश पर, नतमस्तक हैं लोग।
जीवन के हर क्षेत्र में, मन्त्रों का उपयोग।।
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बुधवार, 30 मई 2018
दोहे "तजना नहीं उमंग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंस्वार्थ भरे इस जगत में, जब तक है परमार्थ।
जवाब देंहटाएंतब-तब जग में जन्म ले, वीर धनुर्धर पार्थ।।
बहुत सुन्दर बातें कही है आपने
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.05.17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2987 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद