हरी, लाल और पीली-पीली!
लीची होती बहुत रसीली!!
गायब बाजारों से केले।
सजे हुए लीची के ठेले।।
आम और लीची का उदगम।
मनभावन दोनों का संगम।।
लीची के गुच्छे हैं सुन्दर।
मीठा रस लीची के अन्दर।।
गुच्छा बिटिया के मन भाया!
उसने उसको झट कब्जाया!!
लीची को पकड़ा, दिखलाया!
भइया को उसने ललचाया!!
भइया के भी मन में आया!
सोचा इसको जाए खाया!!
गरमी का मौसम आया है!
लीची के गुच्छे लाया है!!
दोनों ने गुच्छे लहराए!
लीची के गुच्छे मन भाए!!
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सोमवार, 21 मई 2018
बालकविता "आम और लीची का उदगम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंलीची पे लिखी सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंमुंह में पानी आ गया ...