फिर नयी अंजुमन में चलते हैं।।
कभी पत्तों के रँग में ढल जाते,
कभी शाखों के रँग के हो जाते,
लोग गिरगिट की तरह से अपने,
रंग पल-पल यहाँ बदलते हैं।
फिर नयी अंजुमन में चलते हैं।।
कल जहाँ पर चखी मलाई थी,
घूस सौदों में जम के खाई थी,
किन्तु जब से बदल गई बोतल,
नई बोतल में जाम ढलते हैं।
फिर नयी अंजुमन में चलते हैं।।
वो मुसाफिर वही पुराने हैं,
उनके अपने नहीं तराने है,
चाहतों की हसीन दुनिया में,
ख्वाब आँखों में रोज पलते हैं।
फिर नयी अंजुमन में चलते हैं।।
“रूप” बदला लिबास बदला है,
केंचुली का हिसाब बदला है,
नाग हैं आदमी के चोले में,
महफिलों में जहर उगलते हैं।
फिर नयी अंजुमन में चलते हैं।।
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बुधवार, 8 मई 2019
गीत "रंग पल-पल यहाँ बदलते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09.09.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3330 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
Sahi akaha aapne, aajkal log gitgit se tej rang badalne lage hain. Sundar gazal ke liye badhayi. Comment on girl pic & John dalton inventions
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