अब कोई करता नहीं, पुस्तक से सम्वाद।
इसीलिए पुस्तक-दिवस, नहीं किसी को याद।।
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हैं पुस्तक के नाम पर, बस्ते का ही भार।
बच्चों को कैसे भला, पुस्तक से हो प्यार।।
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अभिरुचियाँ समझे बिना, पौध रहे हैं रोप।
नन्हे मन पर शान से, देते कुण्ठा थोप।।
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बालक की रुचियाँ समझ, देते नहीं सुझाव।
बिना काम की पुस्तकें, भर देंगी उलझाव।।
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राजनीति में हो गये, पढ़े-लिखे मगरूर।
हितकारी शिक्षा हुई, भारत में मजबूर।।
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गुरुवार, 23 अप्रैल 2020
दोहे-विश्व पुस्तक दिवस "पुस्तक से सम्वाद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह बहुत ही बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२५-०४-२०२०) को 'पुस्तक से सम्वाद'(चर्चा अंक-३६८२) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
वाह. बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंसार्थक दोहे ! आज की जीवन शैली व व्यवस्था बच्चों को किताबों से दूर करती जा रही है जो चिंता का विषय है ! नीति नियमों में बदलाव की भारी आवश्यकता है कि बच्चों में पुस्तकों के प्रति रूचि जागृत हो और वे सद्साहित्य से परिचित हो सकें !
जवाब देंहटाएंराजनीति में हो गये, पढ़े-लिखे मगरूर।
जवाब देंहटाएंहितकारी शिक्षा हुई, भारत में मजबूर।।
बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब दोहे
वाह!!!
वाह बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएं