जिन्दगी
का गीत, रोटी मे छिपा है।
साज
और संगीत, रोटी में छिपा है।।
रोटियों
के लिए ही, मजबूर हैं सब,
रोटियों
के लिए ही, मजदूर हैं सब।
कीमती
सोना व चाँदी, तब तलक,
रोटियाँ
संसार में हैं, जब तलक।
खेत
और खलिहान सुन्दर, तब तलक,
रोटियाँ
उनमें छिपी हों, जब तलक।
काल
आशातीत रोटी में छिपा है।
साज
और संगीत, रोटी में छिपा है।।
झूठ, मक्कारी, फरेबी, रोटियों के रास्ते हैं,
एकता
और भाईचारे, रोटियों के वास्ते हैं।
हम
सभी यह जानते है, रोटियाँ इस देश में हैं,
रोटियाँ
हर वेश में है, रोटियाँ परिवेश में है।
रोटियों
को छीनने को , उग्रवेशी छा गये हैं,
रोटियों
को बीनने को ही, विदेशी आ गये हैं।
याद
मन्दिर की सताती, रोटियाँ जब पेट में हों,
याद
मस्जिद बहुत आती, रोटियाँ जग पेट में हों।
कृत्य
का अभिनीत रोटी में छिपा है।
साज
और संगीत, रोटी में छिपा है।।
रोटियों
से चल रही है जिन्दगी,
रोटियों
से पल रही है बन्दगी।
राम
ही रोटी बना और रोटिया ही राम हैं,
पेट
की ये रोटियाँ ही, बोलती श्री-राम हैं।
रोटियों
से, थाल सजते, आरती
के,
रोटियों
से, भाल-उज्जवल भारती के।
रोटियों
से बस्तियाँ, आबाद हैं,
रोटियाँ
खाकर, सभी आजाद हैं।
प्यार
और मनमीत, रोटी में छिपा है।
जिन्दगी
का गीत, रोटी मे छिपा है।।
|
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मंगलवार, 28 अप्रैल 2020
"रोटी का गीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सच रोटी जीवन आधार है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
बिन रोटी सब सून, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबिन रोटी सब सून, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन सर .
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