ये भी सही और वो भी सही है
हारे का हथियार तो बस यही है।
लबों ने सहारा लिया है कहन में
कहावत के जरिये सभी कुछ कही है
चलें शेर-शायर अलग राह अपनी
बनारस में गंगा तो उलटी बही है
वही बन गया आदमी दोजहाँ में
हिदायत बुजुर्गों की जिसने सही है
जो लिक्खा नहीं मायने क्या है उसके
बताता जमा-खर्च खाता-बही है
हकीकत से मत अपना दामन बचाना
न जमती फटे दूध से तो दही है
कमजोर बुनियाद पर जो बनी है
झटकों से वो ही इमारत ढही है
नहीं ‘रूप’ से जंग लड़ना है
मुमकिन
अदाओं की अपनी रवायत रही है
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सोमवार, 20 अप्रैल 2020
ग़ज़ल "अदाओं की अपनी रवायत रही है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21 -4 -2020 ) को " भारत की पहचान " (चर्चा अंक-3678) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत अच्छी सीख भरी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकमजोर बुनियाद से इमारत हिल जाती है ...
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब गज़ल है ... हर शेर कमाल ...
बहुत सुन्दर वाह
जवाब देंहटाएंसुंदर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंवाह ! शानदार ग़ज़ल शास्त्री जी ! बहुत खूब !
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