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माता का सम्मान करो,
जय माता की कहने वालों।
भूतकाल को याद करो,
नवयुग में रहने वालों।।
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झाड़ और झंखाड़ हटाकर, राह बनाना सीखो,
ऊबड़-खाबड़ धरती में भी, फसल उगाना सीखो,
गंगा में स्नान करो,
कीचड़ में रहने वालों।
भूतकाल को याद करो,
नवयुग में रहने वालों।।
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बेटों के जैसा ही, बेटी से भी प्यार करो ना,
नारी से नर पैदा होते, ये भी ध्यान धरो ना,
मत जीवन बरबाद करो,
दुनिया में रहने वालों।
भूतकाल को याद करो,
नवयुग में रहने वालों।।
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दया-धर्म और क्षमा-सरलता, ही सच्चे गहने हैं,
दुर्गा-सरस्वती-लक्ष्मी ही, अपनी माता-बहनें हैं।
घर अपना आबाद करो,
पूजन-वन्दन करने वालों।
भूतकाल को याद करो,
नवयुग में रहने वालों।।
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2020) को "नेह का आह्वान फिर-फिर!"
(चर्चा अंक 3660) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
बहुत ही सुन्दर गीत |
जवाब देंहटाएंरामनवमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |
बहुत सुंदर ज्ञानवर्धक दोहे ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंझाड़ और झंखाड़ हटाकर, राह बनाना सीखो,
जवाब देंहटाएंऊबड़-खाबड़ धरती में भी, फसल उगाना सीखो>>>> सभी दोहे सुभाषित ... बहुत खूब शास्त्री जी
सुन्दर प्रस्तुति
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