तालाबन्दी में हमने, ईमान बदलते देखे हैं।
आड़ धर्म की ले करके, इंसान बदलते देखे हैं।।
कोरोना आया भारत में, सबको सबक सिखाने को,
निर्मल नीर हुआ नदियों का, पावन हमें बनाने को,
मौलाना की बोली में, फरमान बदलते देखे हैं।
आड़ धर्म की ले करके, इंसान बदलते देखे हैं।।
भारी पाला दिखा जिधर, उस ओर अचानक जा फिसले,
माना था जिनको अपना, वो थाली के बैंगन निकले,
मक्कारों की टोली में, मैदान बदलते देखे हैं।
आड़ धर्म की ले करके, इंसान बदलते देखे हैं।।
नहीं भरोसा है नियमन पर, तबलीकी हैवानों को,
छिपा रहे अपने दामन में, कोरोना मेहमानों को,
बीमारों
की खोली में, लुकमान बदलते देखे हैं।
आड़ धर्म की ले करके, इंसान बदलते देखे हैं।।
जीवन की आपाधापी में, झंझावात बहुत फैले हैं,
उजले-उजले तन वालों के, अन्तस तो मैले-मैले हैं,
रंगों की रंगोली में, परिधान बदलते देखे हैं।
आड़ धर्म की ले करके, इंसान बदलते देखे हैं।।
साग-दाल को छोड़, अमानुष भोजन को अपनाया है,
लुप्त हो गयी सत्य अहिंसा, हिंसा का युग आया है,
कोरोना की डोली में, सुल्तान बदलते देखे हैं।
आड़ धर्म की ले करके, इंसान बदलते देखे हैं।।
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गुरुवार, 30 अप्रैल 2020
गीत "इंसान बदलते देखे हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कोरोना की डोली में, सुल्तान बदलते देखे हैं।
जवाब देंहटाएंआड़ धर्म की ले करके, इंसान बदलते देखे हैं।।
बहुत यतार्थ वर्णन, आदरणीय शास्त्री जी।
कोरोना ने बहुत सी अस्लियतें सामने ला कर दिखा दीं,इंसानियत की परख का यही अवसर है .
जवाब देंहटाएंकोरोना की डोली में, सुल्तान बदलते देखे हैं।
जवाब देंहटाएंआड़ धर्म की ले करके, इंसान बदलते देखे हैं।।
बहुत ही शानदार, सर ।
वाह !आदरणीय सर बेहतरीन प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसादर