वक्त के साथ बदलना सीखो कायदे से जरा चलना सीखो रास्ते खुद-ब-खुद मिल
जायेंगे घर से बाहर तो निकलना
सीखो जलना पड़ता है रौशनी के लिए शम्मा जैसा तो पिघलना
सीखो आदमीयत को अपनी पहचानों हौसला रखके सँभलना सीखो तू-तू, मैं-मैं न करो अपनों से उम्र के साथ में ढलना
सीखो बे-वजहा क्यों गुरूर करते
हो बुरे जज्बात कुचलना सीखो खोल दो अब तो बन्द दरवाजे खुली हवा में टहलना सीखो जीत जाओगे भरोसा रक्खो हार कर हाथ न मलना सीखो "रूप" पर इतना
क्यों इठलाते हो प्यार की आग में जलना सीखो -- |
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सोमवार, 6 जून 2022
नौशेरी ग़ज़ल "कायदे से जरा चलना सीखो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (7-6-22) को "पेड़-पौधे लगाएं प्रकृति को प्रदूषण से बचाएं"(चर्चा अंक- 4454) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
रास्ते खुद-ब-खुद मिल जायेंगे
जवाब देंहटाएंघर से बाहर तो निकलना सीखो
वाह! प्रेरित करती बेहतरीन ग़ज़ल
जीत जाओगे भरोसा रक्खो
जवाब देंहटाएंहार कर हाथ न मलना सीखो
बहुत सुंदर