गाँधी बाबा के भारत में, जब-जब मक्कारी फलती है। आजादी मुझको खलती है॥ वोटों की जीवन घुट्टी पी, हो गये पुष्ट हैं मतवाले, केंचुली पहिन कर खादी की, छिप गए सभी विषधर काले , कुछ काम नही बैठे ठाले , करते है केवल घोटाले, अब विदुर नीति तो रही नही, केवल दुर्नीति चलती है। आजादी मुझको खलती है॥ प्रियतम का प्यार नसीब नही, कितनी ही प्राण-प्यारियों को, दानव दहेज़ का निगल चुका , कितनी निर्दोष नारियों को , फांसी खाकर मरना पड़ता, अबला असहाय क्वारियों को , निर्धन के घर कफ़न पहन, धरती की बेटी पलती है। आजादी मुझको खलती है॥ निर्बल मजदूर किसानों के, हिस्से में कोरे नारे हैं, चाटुकार-मक्कारों ही के, होते वारे-न्यारे हैं, ये रक्ष संस्कृति के पोषक, जन-गण-मन के हत्यारे हैं, सभ्यता इन्ही की बंधक बन, रोती है आँखें मलती है। आजादी मुझको खलती है॥ मैकाले की काली शिक्षा, भिक्षा की रीति सिखाती है, शिक्षित बेकारों की संख्या, दिन-प्रतिदिन बढती जाती है, नौकरी उसी के हिस्से में, जो नेताजी का नाती है, है बाल अरुण बूढ़ा-बूढ़ा, तरुणाई ढलती जाती है। आजादी मुझको खलती है॥ |
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रविवार, 26 जून 2022
गीत "केवल दुर्नीति चलती है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२७-०६-२०२२ ) को
'कितनी अजीब होती हैं यादें'(चर्चा अंक-४४७३ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत ख़ूब ! लेकिन नेता जी का नाती ही तो - 'जन-गण-मन' है बाक़ी तो सब माया है.
जवाब देंहटाएंकटु सत्य
जवाब देंहटाएंसामायिक परिस्थितियों पर प्रहार करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएं