शीतल-सुखद पहाड़ में, चढ़ो चढ़ाई-ढाल। शान उत्तराखण्ड की, प्यारा नैनीताल।। मई-जून की तपिश से, तन जब हो बेहाल। जाओ ठण्डक देखने, तब तुम नैनीताल।। नयना देवी का जहाँ, मन्दिर बहुत विशाल। नौकायन के है लिए, गहरा जल का ताल।। भीमताल, गिरिताल है, यहाँ नकुचियाताल। कुदरत का है अजूबा, अपना नैनीताल।। न्यायालय है प्रान्त का, आते यहाँ वकील। सबके मन को मोहती, नीली नैनी झील।। अद्भुत छटा पहाड़ की, सीधे-सादे लोग। शीतल छाया चीड़ की, तन को करे निरोग।। खिलता यहाँ बुराँश है, शीतल काफल पेय। आदिकाल से हिमालय, पर्वत रहा अजेय।। |
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१३-०६-२०२२ ) को
'एक लेखक की व्यथा ' (चर्चा अंक-४४६०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह सर नैनीताल पर सुखद सुंदर दोहा सृजन।
जवाब देंहटाएं31 साल हम नैनीताल के बगल में स्थित अल्मोड़ा रहे हैं. वाक़ई गर्मियों में भी पहाड़ की मंद-मंद शीतल बयार, पर्वत माला का विहंगम दृश्य, सर्पाकार सड़कें, सीढियां, देवदार और चीढ़ के वृक्ष और नैनताल तथा उसके आसपास झीलों का सौन्दर्य एक दिव्य-सुखद अनुभव प्रदान करता है.
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
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