-- कोई ख्याल नहीं है मन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। -- सफर चल रहा है अनजाना, नहीं लक्ष्य है नहीं ठिकाना, कब आयेगा समय सुहाना, कब सुख बरसेगा आँगन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। -- कब गाएगी कोकिल गाने, गूँजेंगे कब मधुर तराने, सब बुनते हैं ताने-बाने, कब सरसेगा सुमन चमन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। -- सूख रही है डाली-डाली, नज़र न आती अब हरियाली, सब कुछ लगता खाली-खाली, झंझावात बहुत जीवन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। -- कहाँ गया वो प्यार सलोना, काँटों से है बिछा बिछौना, मनुज हुआ क्यों इतना बौना, मातम पसरा आज वतन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। -- यौवन जैसा “रूप”
कहाँ है, खुली हुई वो धूप कहाँ है, प्यास लगी है,
कूप कहाँ है, खरपतवार उगी उपवन में। पंछी उड़ता नीलगगन में।। -- |
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शनिवार, 11 जून 2022
गीत "सफर चल रहा है अनजाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत सुंदर, शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-6-22) को "सफर चल रहा है अनजाना" (चर्चा अंक-4459) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
प्राकृति के नवीन भावों को उकेरती लाजवाब गीत रचना ...
जवाब देंहटाएंबारिश की आस में...... सुंदर गीत !!
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर रचना
जवाब देंहटाएं