"ग़ज़ल" वो शम्मा मोहब्बत की, जला कर चले गये। एक याद मेरे दिल में, बसा कर चले गये।। बुझती नहीं है आग, लगायी जो सनम ने, यादों की पालकी में, बिठा कर चले गये।। वो इश्क के वादों में, कसम प्यार की खाकर, दामन को अपने हमसे, छुड़ा कर चले गये।। खुशियाँ थी बेशुमार, जब वो पास थे मेरे, वो शम्मा आरजू की, बुझा कर चले गये।। अपनी तो जफा याद है, उनकी न वफा न याद, घर को मेरे ‘बदनाम’, बनाकर चले गये।। स्व. गुरू सहाय भटनागर "बदनाम" |
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गुरुवार, 6 अप्रैल 2023
स्मृतिशेष 'बदनाम' शायर की एक ग़ज़ल (प्रस्तोता-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत शानदार गज़ल। बदनाम जी को शत शत नमन।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी ग़ज़ल। स्मृति-शेष सृजनकर्ता को सादर नमन।
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