-- जब आते हैं सुमन में, सरल-तरल कुछ भाव। दिल की नदिया में तभी, आता खूब बहाव।1। तन-मन को गद-गद करें, अनुशंसा के भाव। तारीफों के लेप से, भर जाते हैं घाव।2। अच्छी सूरत देखकर, मत होना अनुरक्त। जग के मायाजाल से, मन को करो विरक्त।3। जग में मरता है नहीं, कभी कहीं परमार्थ। युगों-युगों के बाद ही, आता जग में पार्थ।4। वेदों ने हमको दिया, आदिकाल में ज्ञान। इनके जैसा है नहीं, जग में छ्न्दविधान।5। सरल नहीं है विरल है, ऊँची-नीची राह। मंजिल तो उनको मिले, जिनके मन में चाह।6। बन्द कभी मत कीजिए, आशाओं के द्वार। मजबूती से थामना, लहरों में पतवार।7। प्राणवायु देते सदा, पीपल, वट औ’ नीम। दुनियाभर में हैं यही, सबसे बड़े हकीम।8। |
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शनिवार, 15 अप्रैल 2023
दोहे "आता खूब बहाव" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार 16 अप्रैल 2023 को 'बहुत कमज़ोर है यह रिश्तों की चादर' (चर्चा अंक 4656) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
लाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक दोहे आदरणीय।
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