-- एक साल में एक दिन, धरती का त्यौहार। कैसे धरती दिवस का, सपना हो साकार।१। -- कंकरीट जबसे बना, जीवन का आधार। धरती की तब से हुई, बड़ी करारी हार।२। -- पेड़ कट गये भूमि के, बंजर हुई जमीन। प्राणवायु घटने लगी, छाया हुई विलीन।३। -- नैसर्गिक अनुभाव का, होने लगा अभाव। दुनिया में होने लगे, मौसस में बदलाव।४। -- शस्य-श्यामला भूमि को, किया प्रदूषित आज। कुदरत से खिलवाड़ अब, करने लगा समाज।५। -- नकली सुमनों में नहीं, होता है मकरन्द। कृत्रिमता में खोजता, मनुज आज आनन्द।६। -- जहर बेचकर लोग अब, लगे बढ़ाने कोष। औरों के सिर मढ़ रहे, अपने सारे दोष।७। -- ओछे कर्मों से हुए, हम कितने मजबूर। आज मजे से दूर हैं, कृषक और मजदूर।८। -- जबसे जंगल में बिछा, कंकरीट का जाल। धरती पर आने लगे, चक्रवात-भूचाल।९। -- अब तो मुझे बचाइए, धरती कहे पुकार। पेड़ लगाकर कीजिए, धरती का शृंगार।१०। -- |
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शनिवार, 22 अप्रैल 2023
दोहे "कंकरीट का जाल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत अच्छा संदेश देती कविता पेड़ लगाइए धरा बचाइए।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चिंतनशील रचना प्रस्तुति
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